गर्भ में शिशु का विकास
गर्भ में पल रहे शिशु का विकास पूरी तरह से गर्भवती महिला पर निर्भर करता है, क्योंकि भ्रूण के विकास के लिए सभी जरुरी पोषक तत्व गर्भवती महिला के शरीर में संचित पोषण से ही लिए जाते हैं। और यह पोषण जो केवल गर्भवती महिला रोजाना खाती है उससे ही नहीं मिलता है बल्कि महिला के स्वास्थ्य और फिटनेस पर भी निर्भर करता है, यानी महिला के शरीर में मौजूद पोषक तत्वों से भी शिशु के विकास के लिए जरुरी पोषण तत्व लिए जाते हैं।
गर्भवती महिला के शरीर में शिशु के अंगो का विकास, शिशु का वजन, शिशु की लम्बाई महीने दर महीने बढ़ती रहती है। और यदि शिशु का विकास गर्भ में बेहतर तरीके से होता है और महिला की डिलीवरी में कोई दिक्कत नहीं आती है, प्रेगनेंसी के दौरान आने वाली परेशानियों के बाद भी महिला अपने स्वास्थ्य का बेहतर तरीके से ध्यान रखती है, आदि। तो गर्भवती महिला को एक स्वस्थ शिशु को जन्म देने में मदद मिलती है। तो आइये अब जानते हैं की स्वस्थ शिशु की पहचान कैसे की जाती है
जन्म के समय शिशु का वजन कितना होना चाहिए
जन्म के बाद शिशु का वजन ही शिशु के स्वास्थ्य पर उसकी प्रतिरोधक क्षमता को बताता है। ऐसे में आप यह कह सकते हैं की जन्म के समय शिशु का वजन यदि कम होता है तो जन्म के बाद शिशु को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। और जान एक स्वस्थ शिशु जन्म लेता है तो उसका वजन 2.5 किलोग्राम से लेकर 2.9 किलोग्राम हो सकता है। यदि शिशु का वजन 2.5 किलोग्राम से कम होता है तो ऐसे शिशु कम वजन वाले शिशु की श्रेणी में आते है।
जबकि बहुत से शिशु तीन या तीन से ज्यादा किलो वजन वाले भी हो सकते है। ऐसे में शिशु का वजन जन्म के के समय ढाई किलो से कम नहीं होना चाहिए। जन्म के बाद शिशु का वजन पहले हफ्ते कम होता महसूस हो सकता है लेकिन उसके बाद जैसे जैसे शिशु को पोषण मिलता है, वैसे वैसे उसका विकास होता है। और जन्म के समय यदि शिशु का वजन कम होता है तो बाद में शिशु का बेहतर तरीके से ध्यान रखकर शिशु को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।
तो यह हैं जन्म के समय शिशु के वजन से जुडी कुछ जानकारी, ऐसे में गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए। और साथ ही प्रेगनेंसी के दौरान अपनी दुगुनी केयर करनी चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे शिशु के बेहतर विकास में मदद मिल सके।