प्रेगनेंसी के नौ महीने
प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए बहुत ही खास समय होता है खासकर जब महिला पहली बार माँ बनती है तो प्रेगनेंसी का नया अनुभव और भी खास होता है। लेकिन माँ बनना इतना आसान भी नहीं होता है क्योंकि प्रेगनेंसी के नौ महीने जितने खास होते हैं। उतना ही इसमें महिला को परेशानियों और बदलाव का सामना कारण पड़ सकता है। और यह परेशानी केवल शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी हो सकती है साथ ही महिला को शारीरिक रूप से बदलाव का अनुभव भी प्रेग्नेंट महिला को करना पड़ सकता है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान कुछ खास अनुभव भी होते हैं जो महिला के माँ बनने के अहसास को और भी बेहतरीन बनाते हैं।
जैसे की शिशु की गर्भ में हलचल, शिशु के जन्म से पहले ही महिला को मातृत्व का अहसास होना, शिशु की केयर को लेकर चिंता करना आदि। प्रेगनेंसी के नौ महीने का हर दिन और डिलीवरी तक का समय महिला के लिए खूबसूरत लम्हो से भरा हुआ होता है और प्रेगनेंसी में इतनी परेशानियों के आने के बाद भी महिला को केवल अपने गर्भ में पल रहे शिशु के आने का इंतज़ार भी होता है। इस समय घर का हर सदस्य, आपसे जुड़ा हर व्यक्ति महिला को प्रेगनेंसी में क्या सही है क्या नहीं इसके बारे में समझाता है। तो आइये आज हम आपको प्रेगनेंसी की तीनों तिमाही में प्रेग्नेंट महिला की लाइफ में क्या क्या हो सकता इसके बारे में बताते हैं। जिससे पहली बार माँ बनने के अनुभव को करीब से जानने में आपको थोड़ी मदद मिलेगी।
प्रेगनेंसी की पहली तिमाही
गर्भावस्था की पहली तिमाही के पहले महीने में महिला को पता भी नहीं होता है की महिला का गर्भ ठहर गया है, लेकिन दूसरी तिमाही में पीरियड्स मिस होने के बाद महिला को जैसे ही प्रेगनेंसी की खबर मिलती है तो यह प्रेगनेंसी का पहला खूबसूरत पल होता है। और जितना खूबसूरत यह पल होता है उतना ही इस दौरान महिला को शारीरिक परेशानियां भी अधिक होती है। क्योंकि इस दौरान गर्भ में शिशु के प्रत्यारोपण से लेकर शिशु के अंगो के बनने की प्रक्रिया होती है। जिसके कारण बॉडी में बहुत तेजी से हार्मोनल बदलाव होते हैं और इसके कारण उल्टियां आना, मॉर्निंग सिकनेस, बार बार यूरिन आने की समस्या होना, स्पॉटिंग की समस्या, सिर में दर्द, मूड स्विंग्स होना, भूख कम लगना आदि।
यह कुछ परेशानियां प्रेग्नेंट महिला को पहले तीन महीने में हो सकती है। और ऐसा जरुरी नहीं है की हर गर्भवती महिला को एक जैसी ही परेशानी हो बल्कि यह हर गर्भवती महिला के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव पर निर्भर करता है। इन तीन महीनों में गर्भ में शिशु के लगभग सभी अंगो की आकृतियां बनने की शुरुआत हो जाती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के पहले तीन महीने महिला के लिए तनाव से भरे हुए भी हो सकते हैं क्योंकि पहली बार माँ बनने वाली महिलाएं इस दौरान छोटी -छोटी बातों को लेकर परेशान हो सकती है। जैसे की प्रेगनेंसी के दौरान क्या करना सही है और क्या गलत, प्रेगनेंसी के दौरान क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, आदि, इसके अलावा कुछ महिलाएं इस दौरान बॉडी में हो रहे तेजी से बदलाव के कारण तनाव में भी आ सकती है।
प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही
प्रेग्नेंट महिला के लिए प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही को आप थोड़ा हैप्पी कह सकते हैं, क्योंकि इस दौरान महिला की परेशानियां थोड़ी कम हो जाती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही में महिला को राहत मिलने के साथ एक नए अनुभव को एन्जॉय करने को भी मिलता है, क्योंकि इस दौरान महिला का पेट थोड़ा बाहर आने के कारण महिला को ख़ुशी मिलती है साथ ही उसकी उत्सुकता भी बढ़ती है और पांचवें महीने के आस पास गर्भ में थोड़ी बहुत शिशु की हलचल का अनुभव भी महिला को होता है जो महिला को गर्भ में शिशु के होने का एक खास अनुभव करवाता है। लेकिन इस दौरान कुछ महिलाओं को थोड़ी बहुत परेशानी भी रह सकती है लेकिन इसमें घबराने की कोई बात नहीं होती है क्योंकि प्रेगनेंसी में ऐसा होना बहुत ही आम होता है, लेकिन महिला को अपनी केयर के प्रति किसी भी तरह की लापरवाही दूसरी तिमाही में भी नहीं करनी चाहिए।
प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में महिला का वजन बढ़ जाता है, पेट भी पहले की अपेक्षा बाहर आ जाता है, शिशु का गर्भ में शारीरिक विकास भी तेजी से बढ़ता है, आदि। ऐसे में प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में महिला का वजन बढ़ने के कारण महिला को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जैसे की काम करने में परेशानी होना, उठने बैठने में दिक्कत होना, कब्ज़ की समस्या का अधिक होना, सोने में परेशानी होना, यूरिन ज्यादा आना, बेचैनी महसूस होना, आदि। साथ ही जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कॉम्प्लीकेशन्स होती है उनके लिए तो यह तिमाही और भी ज्यादा मुश्किलों भरी हो सकती है।
ऐसे में गर्भवती महिला को इस तिमाही में बहुत अधिक सावधानी बरतने की जरुरत होती है। क्योंकि इस दौरान यदि महिला अपना अच्छे से ख्याल नहीं रखती है तो इसके कारण महिला की डिलीवरी समय से पहले होने का डर रहता है। इस समय की गई लापरवाही के कारण कई बार शिशु को गर्भ में परेशानी हो सकती है जिसके कारण डिलीवरी के दौरान दिक्कतें आ सकती है। ऐसे में प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में महिला को बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरुरत होती है, क्योंकि इस दौरान शिशु का विकास भी तेजी से होता है और महिला को भी परेशानी अधिक हो सकती है।
साथ ही नौवें महीने में या डॉक्टर की बताई गई तिथि के आस पास महिला की डिलीवरी किसी भी समय हो सकती है, और कई महिलाएं इस समय यह सोचकर परेशान हो सकती हैं की उनकी डिलीवरी नोर्मल होगी या सिजेरियन, तो ऐसे में महिला को बिल्कुल भी इस बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि डिलीवरी का समय पास आने पर ही डॉक्टर इस बारे में बता पाते हैं की शिशु की नोर्मल डिलीवरी होगी या सिजेरियन। । ऐसे में गर्भवती महिला के लिए इस समय बॉडी में प्रसव के संकेतों को समझना भी जरुरी होता है। जैसे की पेट में दर्द, मांसपेशियों में खिंचाव, एमनियोटिक फ्लूड का निकलना, आदि।
तो यह हैं प्रेग्नेंट महिला को प्रेगनेंसी के नौ महीने किस किस परेशानी से गुजरना पड़ता है, और महिला को कौन कौन सी दिक्कत आ सकती है इससे जुडी कुछ जानकारी। लेकिन प्रेग्नेंट महिला को प्रेगनेंसी के दौरान कितनी भी दिक्कत हो उसे कम करने के लिए सोचना चाहिए और उससे घबराना नहीं चाहिए, और अपनी अच्छे से केयर करनी चाहिए, समय समय पर डॉक्टर से राय लेते रहना चाहिए, अपनी जांच समय पर करवानी चाहिए, ताकि महिला को स्वस्थ रहने में मदद मिल सके और गर्भ में शिशु का विकास बेहतर तरीके से हो सके। तो यदि आप भी माँ बनने वाली है तो आपको भी इन बातों का ध्यान रखना बहुत जरुरी है ताकि प्रेगनेंसी के नौ महीने क्या होता है इसे समझने में आपको आसानी हो सके।