गर्भावस्था महिला के लिए बहुत ही उत्साह से भरा हुआ समय होता है लेकिन फिर भी इस दौरान कुछ महिलाएं तनाव, गुस्सा, इर्रिटेशन, आदि महसूस कर सकती है। प्रेगनेंसी के दौरान ऐसा होना बहुत ही आम बात होती है क्योंकि बॉडी में होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण महिला को मूड स्विंग्स होते हैं जिसकी वजह से महिला को यह समस्या हो सकती है।
लेकिन एक हद तक यह सब सामान्य होता है और उसके बाद जब महिला को ज्यादा तनाव होता है, गुस्सा आता है तो यह नुकसानदायक हो सकता है। साथ ही गर्भ में पल रहे शिशु का जुड़ाव भी माँ से इस तरीके का होता है की महिला जो भी करती है उसका प्रभाव शिशु पर भी पड़ता है। आज इस आर्टिकल में हम आपको गर्भावस्था के दौरान यदि महिला ज्यादा गुस्सा करती है तो शिशु पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है उसके बारे में बताने जा रहे हैं। लेकिन उससे पहले जानते हैं की प्रेगनेंसी में गुस्सा क्यों आता है।
प्रेगनेंसी में गुस्सा आने के कारण
हार्मोनल बदलाव: प्रेगनेंसी के दौरान महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव हो रहे होते हैं जिसकी वजह से महिला को मूड स्विंग्स होते हैं और मूड स्विंग्स होने के कारण महिला को कभी कभार गुस्सा आ जाता है।
तनाव: गर्भावस्था के दौरान महिला के मन में इतने सवाल चल रहे होते हैं जैसे की क्या होगा कैसे होगा, आदि। जिसकी वजह से महिला तनाव में आ जाती है और तनाव होने के कारण महिला को गुस्सा आने जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
डर: पहली बार माँ बन रही महिलाओं के मन में शिशु के विकास, प्रेगनेंसी के नौ महीनें, प्रसव आदि को लेकर डर होता है और कई बार डर गुस्से के रूप में बाहर आता है।
शारीरिक परेशानियां: प्रेगनेंसी के दौरान कुछ महिलाओं को शारीरिक परेशानियां अधिक हो सकती है जिसकी वजह से महिला परेशान रहती है और महिला को गुस्सा अधिक आ सकता है।
गर्भवती महिला को गुस्सा आने पर शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
जब महिला के खान पान रहन सहन आदि का असर गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है तो महिला प्रेगनेंसी के दौरान जब गुस्सा करती है तो उसका असर भी शिशु पर पड़ता हैं। जैसे की:
आपका शिशु पैदा होने के बाद बहुत रोता है
ऐसा माना जाता है की प्रेगनेंसी के दौरान जो महिलाएं बहुत अधिक गुस्सा करती है उसकी वजह से उनका होने वाला शिशु जन्म के बाद बहुत रोता है। और यह उसकी आदत के रूप में बाहर आती है यानी की हर छोटी छोटी बात पर वो रोना शुरू कर देते हैं।
शिशु चिड़चिड़ा होता है
जिन गर्भवती महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान बहुत अधिक गुस्सा आता है उनका होने वाला शिशु बहुत चिड़चिड़ा भी होता है। ऐसे बच्चे खाने पीने सोने आदि में बहुत ज्यादा तंग करते हैं।
शिशु का विकास कम होता है
प्रेगनेंसी के दौरान जिन महिलाओं को बहुत गुस्सा आता है तो उसका असर गर्भ में पल रहे शिशु के विकास को भी कई बार प्रभावित करता है। खासकर इसकी वजह से शिशु का दिमागी विकास बुरी तरह प्रभावित हो सकता है जिसका असर आपको बाद में शिशु में देखने को मिल सकता है साथ ही इससे शिशु के शारीरिक विकास पर भी असर देखने को मिल सकता है।
गर्भवती महिला गुस्से को कण्ट्रोल करने के लिए अपनाएँ यह टिप्स
गर्भावस्था के दौरान यदि महिला को गुस्सा अधिक आता है तो कुछ आसान टिप्स को ट्राई करने से महिला अपनी इस समस्या से निजात भी पा सकती है जिससे महिला को अपने गुस्से को कण्ट्रोल करने में मदद मिलती है। जैसे की:
- खान पान अच्छा रखें इससे आपको एनर्जी से भरपूर रहने में मदद मिलती है जिससे आपका मूड अच्छा रहता है।
- रोजाना थोड़ी देर वॉक, व्यायाम, मैडिटेशन, योगा आदि जरूर करें इससे आपको शारीरिक व् मानसिक रूप से फिट रहने में मदद मिलती है।
- प्रेगनेंसी के दौरान अपने आप को खुश रखने के लिए वो काम जरूर करें जिससे आपको ख़ुशी मिलती है जैसे की पेंटिंग, किताबें पड़ना, पौधों के साथ समय बिताना आदि।
- गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर की हलकी मालिश करवाएं इससे आपको शारीरिक व् मानसिक रूप से फिट रहने में मदद मिल सकेगी।
- ऐसे माहौल में न रहने से बचे जहां आपको तनाव महसूस होता है या आपकी बहस हो सकती है।
- अपनी दिनचर्या का सही से पालन करें।
- भरपूर आराम करें इससे भी आपको अपने आप को दिमागी रूप से रिलैक्स रखने में मदद मिलेगी।
- अपने मन में चल रही बातों को मन में ही न रखें बल्कि उन्हें व्यक्त करें। ऐसा करने से आपको अपने मन को हल्का करने में मदद मिलेगी।
- गुस्सा यदि ज्यादा आता हो तो इसे अनदेखा न करते हुए एक बार डॉक्टर से मिलकर बात करें ताकि आपकी समस्या का समाधान हो सकें।
- पॉजिटिव रहें और इसके लिए जब भी आपका मन हो आप अपने शिशु से बातें करें।
तो यह हैं गर्भावस्था में गुस्सा आने के कारण, गुस्से के कारण शिशु पर पड़ने वाला प्रभाव व् प्रेगनेंसी में गुस्से की समस्या को कम करने के टिप्स। यदि आप भी प्रेग्नेंट हैं तो हो सकता है आपको भी यह समस्या हो ऐसे में आपको अपने गुस्से को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए और जितना हो सके इस समस्या से कैसे बचा जाए इसके बारे में सोचना चाहिए।