माँ बनना महिला के लिए एक बहुत ही खास अनुभव होता है क्योंकि महिला पूरे नौ महीने तक अपने गर्भ में एक नन्ही जान को सींचती है। उसके बाद जब वो नन्हा शिशु जन्म लेता है तो यह केवल बच्चे का ही जन्म नहीं होता है बल्कि इस दौरान माँ भी नया जन्म लेती है। गर्भावस्था की शुरुआत से आखिर तक महिला के मन में बहुत से सवाल आते हैं और ज्यादातर महिलाएं इस बारे में जरूर सोचती है।
की आखिर ऐसा कैसे ही जाता है की बच्चा जन्म लेने की सही पोजीशन में आ जाता है या क्यों नहीं आता है, डिलीवरी लेट क्यों हो जाती है, डिलीवरी पेन के लिए महिला को क्या करना चाहिए, आदि। तो ज्यादा मत सोचिये क्योंकि आज इस आर्टिकल में हम आपको बच्चे के जन्म लेने से जुडी जानकारी आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं।
गर्भ में शिशु जन्म लेने की सही पोजीशन में कब आता है?
प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय में शिशु लगातार मूवमेंट करता रहता है और अपनी पोजीशन बदलता रहता है। जैसे जैसे शिशु का विकास बढ़ता है वैसे वैसे गर्भ में शिशु को घूमने के लिए जगह कम मिलने लगती है। साथ ही शिशु के जन्म लेने का समय भी पास आने लगता है। तो शिशु हेड डाउन पोजीशन में आने लगता है हेड डाउन पोजीशन में शिशु का सिर नीचे की तरफ हो जाता है। और इस अवस्था में शिशु प्रेगनेंसी के 32वें से 36वें हफ्ते में आ जाता है। उसके बाद जैसे ही लेबर पेन शुरू होता है, एमनियोटिक फ्लूड निकलने लगता है तो बच्चे का जन्म लेने का सही समय आ जाता है।
गर्भ में शिशु जन्म लेने की सही पोजीशन में कैसे आता है?
माँ के गर्भ में बच्चा पूरे नौ महीने तक विकसित होता है ऐसे में जब बच्चे के जन्म का समय पास आता है तो महिला कुछ नहीं करती है। बल्कि जब बच्चा गर्भ में घूमता है और उसका सिर अपने आप ही पेल्विक एरिया के पास आता है और बच्चे की रीढ़ की हड्डी और चेहरा महिला के पेट से सटा होता है। उसके बाद धीरे धीरे जब बच्चा के सिर के दबाव से पेल्विक एरिया पर जोर पड़ता है वैसे वैसे गर्भाशय की ग्रीवा का मुँह खुलने लगता है। तो इसका मतलब यह होता है की जन्म लेने के लिए शिशु का सही पोजीशन में आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
बच्चे के जन्म लेने में देरी के क्या कारण होते हैं?
ऐसा बिल्कुल भी जरुरी नहीं होता है की महिला की डिलीवरी डॉक्टर द्वारा बताई गई तिथि पर ही होती है। कुछ महिलाओं को डिलीवरी डेट से पहले या बाद में डिलीवरी हो सकती है। लेकिन कुछ महिलाओं को प्रसव की शुरुआत ही नहीं होती है। इसका कोई अलग कारण नहीं होता है बल्कि गर्भ में यदि शिशु जन्म लेने की सही पोजीशन में नहीं आता है तो हो सकता है की महिला को प्रसव पीड़ा नहीं हो। लेकिन ऐसे में महिला को दो बातों का खास ध्यान रखना चाहिए पहली शिशु की हलचल का ध्यान रखें दूसरा डिलीवरी डेट निकल जाने के बाद तुरंत डॉक्टर से मिलें।
डिलीवरी डेट निकल जाने पर महिला को क्या करना चाहिए?
जब महिला की डिलीवरी का समय पास आता है तो महिला को अच्छे से आहार लेना चाहिए, व्यायाम करना चाहिए, मसाज करनी चाहिए, आदि। क्योंकि इससे महिला स्वस्थ रहती है और महिला के शरीर को डिलीवरी के लिए तैयार करने में मदद मिलती है। लेकिन कई बार डिलीवरी डेट निकल जाने के बाद भी महिला को शरीर में प्रसव का कोई भी लक्षण महसूस नहीं होता है। ऐसे में महिला को इसे अनदेखा न करते हुए डॉक्टर से मिलना चाहिए। क्योंकि डिलीवरी डेट निकल जाने के बाद गर्भ में शिशु का ज्यादा दिनों तक रहना माँ व् बच्चे दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
यदि आप भी गर्भवती हैं, तो इन बातों का आपको भी ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि प्रसव की जानकारी जितने अच्छे से होती है उतना ही प्रेगनेंसी और प्रसव को आसान बनाने में मदद मिलती है। और हर परेशानी से माँ व् बच्चे को सुरक्षित रहने में मदद मिलती है।
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