शादी में कन्यादान क्यों किया जाता है

हिन्दू धर्म में परिवार के निर्माण की जिम्मेवारी उठाने के लिए योग्यता, शारीरिक व् मानसिक परिपक्वता आने पर लड़के और लड़की का विवाह संस्कार कराया जाता है, जिसमे दो अनजान एक दूसरे का साथ सारी जिंदगी साथ देने के लिए तैयार हो जाते है, इसे सभी समाज के व्यक्तियों के बीच, गुरुजनो के समक्ष, देवताओ की उपस्थिति में किया जाता है ताकि कोई भी इस बंधन की उपेक्षा न करें, और वर वधु सभी के सामने अपने प्रतिज्ञा बंधन की घोषणा करते है, इसी को विवाह संस्कार कहा जाता है, तो आइये अब जानते है विवाह संस्कार की रस्म कन्यादान के बारे में और इसमें क्या किया जाता है उस के बारे में विस्तार से।

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कन्यादान का क्या अर्थ होता है:-

कन्यादान का सही अर्थ होता है, जिम्मेदारी को सुयोग्य हाथो में सोंपना, शादी से पहले तक माता-पिता कन्या के भरण-पोषण, विकास, सुरक्षा, सुख-शान्ति, आनन्द-उल्लास आदि का प्रबंध करते थे, अब वह प्रबन्ध जिससे उस लड़की की शादी होती है, वो और उसके परिवार वाले करते है, और कन्यादान का ये मतलब बिलकुल नहीं होता है, की जिस प्रकार कोई वस्तु बेचीं या खरीदी जाती है, बल्कि इसमें वर वधु की जिम्मेवारी उठाता है,

और इसमें इसका ये मतलब भी बिलकुल नहीं होता है, की आप किसी चीज की तरह लड़की का आप उपयोग करने के लिए दे रहे है, इसके साथ कन्या अपने नए घर में जाकर अकेला न अनुभव करें, उसे प्यार, सहयोग, और सद्भाव की कमी का अनुभव न हो, इसका पूरा ध्यान अब वर के कुटुम्बियों को ही रखना होता है, और उसकी हर एक जिम्मेवारी को प्यार के साथ उठाना होगा।

कन्यादान में क्या करते है:-

कन्यादान करते समय कन्या के हाथ हल्दी से पीले करके माता-पिता अपने हाथ में कन्या के हाथ लेते है, और गुप्तदान का धन और फूल रखकर संकल्प बोलते है, और उन हाथों को दूल्हे के हाथों में सौंप देते है, वह इन हाथों को गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों में पकड़ कर, इस जिम्मेदारी को स्वीकार करता है, और कन्या की जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार हो जाता है, कन्या के रूप में अपनी पुत्री, दूल्हे को सौंपते हुए उसके माता-पिता अपने सारे अधिकार और उत्तरदायित्व भी को सौंपते उसके होने वाले पति को सोप देते है,

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कन्यादान के बाद कन्या के कुल गोत्र अब पितृ (पिता) परम्परा से नहीं, पति परम्परा के अनुसार होंगे, कन्या को यह भावनात्मक पुरुषार्थ करने तथा पति को उसे स्वीकार करने या निभाने की शक्ति देवशक्तियाँ प्रदान कर रही है, इस भावना और सभी की मौजूदगी में कन्यादान का संकल्प बोला जाता है. संकल्प पूरा होने पर संकल्प करने वाला (पंडित) कन्या के हाथ वर के हाथ में सौंप देता है, यही परंपरा कन्यादान कहलाती है, और हिंदी रीति रिवाज़ में कन्यादान को ही सबसे बड़ा दान कहा गया है।

शादी में कन्यादान क्यों किया जाता है:-

शादी में कन्यादान करने का मतलब होता है, की पिता अब अपनी बेटी की जिम्मेवारी को अब वर के हाथ में सोप देता है, अब उसके सभी उत्तरदायित्व की पूर्ति उसके ससुराल वाले ही करते है, और कन्यादान में संकल्प करते समय पिता अपनी बेटी का हाथ और उसकी सभी जिम्मेवारियां उसके होने वाले पति के हाथ में सोप देता है, इसे ही कन्यादान कहा जाता है, और बिना कन्यादान के हिन्दू रीतिरिवाज़ में शादी का कोई महत्व भी नहीं होता है।

तो ये है हिन्दू रीतिरिवाज़ में कन्यादान का महत्व और क्यों किया जाता है, इस बारे में कुछ बातें, और इसे पूरे विधि विधान के साथ हवं की पवित्र अग्नि के सामने लिया जाता है, ताकि सभी देवशक्तियां विराजमान हो, और वर और वधु को आशिर्वाद मिलें, और उनका वैवाहिक जीवन सफलता पूर्वक बीतें।

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