ग्राहक की तारीफ़ों के पुल बाँध कर –
लगभग हर दुकानदार का फ़ेवरिट डायलोग होता है, अरे मैडम ये ड्रेस तो आपको बहुत सूट करेगा या ये रंग आप पर बहुत खिलेगा। तारीफ़ सुनकर आधा मन तो वैसे ही बन जाता है चीज़ ख़रीदने का और बाक़ी आधा पहले ही कश्मकश में होता है कि इसे ख़रीदें या नहीं। इसलिए ना चाहते हुए भी चीज़ ख़रीद ली जाती है।
एक चीज़ दिखाते दिखाते कई दिखा देना –
दुकानदारो को आदत होती है, एक चीज़ दिखाने को कहो तो पाँच सात और चीज़ें साथ में दिखा ही देते हैं। इतनी सारी चीज़ें देखते देखते एक दो तो आपको पसंद आ ही जाती हैं, फिर आप सोचती हैं कि अपने लिए लिया है तो बच्चे के लिए भी कुछ ले लो, फिर दिमाग़ में आता है कि पति को क्यूँ छोड़ना, उनके लिए भी कुछ ले लो और इस तरह से आप लेने गई होती हैं एक दुपट्टा और लेके आती हैं दो साड़ी, एक सूट, पति के लिए शर्ट, बच्चे के लिए ड्रेस और साथ में एक दुपट्टा, जो आप लेने गईं थीं।