गर्भधारण करने के बाद इन टेस्ट को जरुर करवाना चाहिए:-
गर्भधारण किसी भी महिला के लिए बहुत ही खास लम्हा होता है। और ऐसे में महिला को अपनी और भी देखभाल और केयर करनी पड़ती हैं, बहुत सी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि महिला के गर्भधारण के बाद उसमे बहुत से बदलाव आते है, जैसे की महिला का वजन बढने लगता है, कई महिलाओ को उलटी की समस्या हो जाती हैं, कुछ महिलाएं चक्कर की परेशानी से परेशान हो जाती है, और गर्भावस्था के दौरान महिला कई नये अनुभवों से भी गुजरती हैं, जैसे की जब बच्चा गर्भ में हिलना डुलना शुरू करता हैं, और कभी अचानक से लात मारता हैं, ऐसे की कुछ लम्हों पर आपको बहुत आचा लगता हैं, और आप सबके साथ इस लम्हे को शेयर करते है।
गर्भावस्था में महिला को अपने खान पान और साथ ही अपने उठने बैठने चलने सबका ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही कभी कभी आपके लिए खतरनाक साबित हो सकती है, क्योंकि कई बार शुरुआती दिनों में लापरवाही बरतने के कारण गर्भपात होने की सम्भावना भी बढ़ जाती हैं, महिलाओ को गर्भावस्था के समय कभी भी ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी चाहिए, भारी सामान नहीं उठाना चाहिए, पपीते का सेवन नहीं करना चाहिए, इन सबके कारण भी कई बार गर्भ गिर जाता हैं, या ब्लीडिंग की परेशानी हो जाती हैं, जिसके कारण गर्भावस्था का पूरा समय आपको बेड रेस्ट भी हो सकता है।
गर्भावस्था के समय महिलाओ को अपनी सेहत के साथ भी किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, जैसे की महिलाओ को समय समय पर डॉक्टर से जाँच करवानी चाहिए, खान पान में किसी भी तरह ही लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, सेहत में किसी भी तरह की समस्या होने पर अनदेखा न करके उसी समय डॉक्टर से जाँच करवानी चाहिए, और बच्चे की स्थिति को जानने के लिए भी स्केन आदि करवाते रहना चाहिए, और कुछ टेस्ट भी होते हैं, जो महिला और बच्चे के लिए बहुत जरुरी हैं, इसीलिए समय पर आपको ये टेस्ट करवाते रहना चाहिए, तो आइये अब विस्तार से जानते हैं की आपको कौन कौन से टेस्ट करवाने चाहिए।
गर्भधारण के बाद होने कौन कौन से टेस्ट करवाएं जाने चाहिए:-
पहले तिमाही में करवाएं ये टेस्ट:-
यूरिन टेस्ट:-
यूरिन को लेकर महिला का शुगर और प्रीक्लेम्पसिया का एक टेस्ट होता हैं, प्रीक्लेम्पसिया ये परेशानी पांच प्रतिशत गर्भवती महिलाओ में होती हैं, इसका सीधा असर महिला और गर्भ में पल रहें शिशु पर इसका असर पड़ता हैं, यदि ये समस्या होती हैं तो महिला का वजन अचानक से बढने लग जाता हैं, सर दर्द, सुजन, पेट में दर्द, धुंधला दीखना, आदि परेशानिया होने लग जाती हैं, ये परेशानी कई बार महिला को प्रेगनेंसी के मध्य में भी होसकती हैं इसीलिए डॉक्टर के कहे अनुसार आपको इसकी जाँच करवानी चाहिए ताकि इसका बुरा असर आपके होने वाले बच्चे या महिला पर न पड़ें।
ब्लड से होने वाल टेस्ट:-
उसके बाद महिला के ब्लड से सम्बंधित टेस्ट भी करवाने चाहिए, इसमें महिला का एसटीडी, एच् सी जी, आपके जीवाणु आदि का टेस्ट होता हैं, जिससे महिला के अंदर या उसके होने वाले बच्चे को कई परेशानी न हो इसके लिए टेस्ट किये जाते हैं, आइये अब विस्तार से जानते हैं की इन टेस्ट में क्या क्या होता है।
एसटीडी:-
इस टेस्ट में ये चेक किया जाता हैं की महिला को कोई यौन संचारित रोग तो नहीं हैं, जब कोई बिना किसी सुरक्षा के योंन सम्बन्ध बनाते हैं, तो इस रोग के फैलने की आशंका होती हैं, यदि आपका साथी इस रोग से ग्रसित हो तो, इसके कारण होने वलेबच्चे को कोई परेशानी न हो, इसीलिए इस टेस्ट को किया जाता है।
Rh फैक्टर टेस्ट:-
इस टेस्ट के द्वारा ये पता किया जाता हैं की क्या आपके बच्चे का और आपका ब्लड ग्रुप एक जैसा है या नहीं, यदि आप दोनों का ब्लड ग्रुप एक जैसा नहीं होता हैं तो कई बार डिलीवरी के समय या गर्भावस्था के दौरान महिला को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
9th सप्ताह में होने वाला टेस्ट:-
NIPT टेस्ट:-
इसमें महिला के शरीर में कोई भी तकलीफ या क्रोमोसोमस की संख्या में कोई परेशानी तो नहीं हैं इस विषय में टेस्ट किया जाता है। क्योंकि यदि कोई कमी होती है तो डॉक्टर साथ ही उस समस्या का इलाज कर देते हैं, ताकि महिला को डिलीवरी के समय कोई परेशानी न हो, और साथ ही बच्चे पर भी इसका कोई बुरा असर न पड़ें।
10 से 13 सप्ताह में होने वाला टेस्ट:-
CVS टेस्ट:-
इसमें महिला को गर्भाशय से सम्बंधित कोई परेशानी तो नहीं हैं, बच्चे के बढने के कारण गर्भाशय से सम्बंधित कोई परेशानी तो नहीं हो रही हैं, इस बारे में अच्छे से चेक किया जाता हैं, और यदि कुछ हो, तो साथ ही इस परेशानी का इलाज भी किया जाता है।
11 से 14 हफ्ते में होने वाला टेस्ट:-
NT टेस्ट:-
इस टेस्ट में महिला का अल्ट्रासाउंड स्केन किया जाता हैं जिसमे बच्चे की स्थिति, और उसके आकार के बारे में अच्छे से बताया जाता हैं, और साथ ही बच्चे के हदय की गति के बारे में भी बताया जाता हैं, इसीलिए इस टेस्ट को समय पर ही करवाना चाहिए, ताकि कोई लापरवाही न हो, और माँ और बच्चा दोनों ही स्वस्थ हो।
14 तो 22 सप्ताह में होने वाला टेस्ट:-
इस समय में भी महिला को डॉक्टर के पास अपने गर्भाशय के जाँच के लिए जाना चाहिए, ताकि आप बच्चे और महिला दोनों को कोई परेशानी न हो, और साथ ही डिलीवरी के समय भी महिला को कोई दिक्कत का सामना न करना पड़ें, इसीलिए इन दिनों में डॉक्टर के बताएं अनुसार डॉक्टर से जरुर चेक करवाना चाहिए।
18 तो 22 सप्ताह टेस्ट:-
इस बीच भी महिला को एक स्केन करवाना चाहिए, और इस स्केन में डॉक्टर आपको बच्चे के सभी अंगो को विस्तार से देखा भी सकती हैं, की बच्चा गर्भ में क्या कर रहा है, बच्चे के भीतरी रूप से हर एक अंग की जांच की जाती हैं, साथ ही डॉक्टर तो गर्भ में पल रहें शिशु के सेक्स से वाकिफ हो जाती हैं, और कई बार तो बच्चे को आप हिलता हुआ भी देख सकते है।
24 से 28 सप्ताह में होने वाला टेस्ट:-
इस बीच महिला का Glucose Tolerance Test होता हैं, इसमें महिला का फिर से शुगर का टेस्ट किया जाता हैं, क्योंकीसके कारण भी महिला की डिलीवरी में परेशानिया आ सकती हैं, इसीलिए आपके लिए जरुरी हैं की आप इसे नज़रंदाज़ न करें, बल्कि इन सभी टेस्ट को समय से करवाएं, ताकि आपको और आपके बच्चे को कोई और परेशानी न हो।
तीसरी तिमाही में होने वाले महिला के टेस्ट:-
Nonstress test और biophysical profile :-
इस टेस्ट में बच्चे का हिलना डुलना, बच्चे की हदय की गति, और उसकी गर्भ में क्या स्थिति हैं इस बारे में चेक किया जाता हैं, और यदि डिलीवरी के समय कोई समस्या आने वाली हो तो उसका भी इलाज किया जाता है।
Group B strep:-
इसमें एक तरह के वायरस का टेस्ट किया जाता हैं जिससे बच्चे के जन्म के बाद बच्चे पर कोई बुरा प्रभाव न पड़ें, तो इसीलिए आपको इन में से किसी भी टेस्ट के प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
डॉक्टर से राय लें:-
महिला को बच्चे के लिए और अपने स्वास्थ्य के लिए समय समय पर डॉक्टर से जाँच करवाते हुए रहना चाहिए, और इस बारे में आपको जैसे ही आपको पता चले की आप माँ बनने वाली हैं, वैसे ही डॉक्टर से जाँच करवाने के बाद आप अगली जाँच और पुरे नौ महिने तक कौन कौन से टेस्ट करवाने हैं इस बारे में अच्छे से जानकारी भी लेनी चाहिए, और डॉक्टर के परामर्श के अनुसार चलना चाहिए।
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