घर में नन्हे शिशु के आते ही घर का पूरा माहौल खुशनुमा हो जाता है। घर के बड़े हो या छोटे सभी छोटे बच्चे की हर हरकत को महसूस भी करते है और देखते भी है। एक माँ भी शिशु को लेकर इतनी उत्साहित होती है के शिशु के दूध पीने, छींक मारने, नहाने यहां तक के उसकी नींद को भी बहुत ध्यान से देखती है। आप सभी ने भी देखा होगा के शिशु कभी नींद में हँसते है और कभी नींद में रोते है।
अपने घर के बड़ो को आपने कहते हुए सुना होगा के बच्चो को नींद में भगवान् हँसाते है और रुलाते है। और कुछ लोग मानते है के नन्हें शिशु को अपने पिछले जन्म से जुडी सभी बाते याद होती है और जब शिशु सोता है तो उसे सभी बाते याद आती जिनकी वजह से वह कभी हँसता है और कभी रोता है। माना जाता है के जब शिशु को कोई अच्छी बात याद आती है तो वह मुस्कराने लगता है और उसके पिछले जन्म से जुडी जब कोई बुरी बात सामने आती है तो वह लगता है।
हालाँकि विशेषज्ञ का कहना इसके बिलकुल ही विपरीत है। उनके अनुसार नींद में बच्चे की ऑंखें लगातार घूमती रहती है। नींद में शिशु की आँखों की मूवमेंट को रैपिड आई मूवमेंट कहते है। इस मूवमेंट के समय शिशु बहुत चीजे अनुभव करता है जैसे हंसना, रोना, डरना आदि। डॉक्टरों के अनुसार दिन में बीती सभी बातों को शिशु रात में फिर से अनुभव करता है जिसके कारण वह रोता और हँसता भी है।
कुछ डॉक्टरों के अनुसार पुरे दिन भर में शिशु जो भी आवाजे सुनता है या जो कुछ भी महसूस करता है उन सभी चीजों को अपने दिमाग में बसा लेता है और सोते समय इन्ही अनुभवों को दोहराता है। जिसे दोबारा अनुभव करते समय वह खुश होता है और रोता है। डॉक्टर मानते है के इस प्रक्रिया द्वारा शिशु का भावनात्मक विकास होता है। डॉक्टरों के यह एक नियम होता है जिससे हर शिशु को गुजरना पड़ता है।
हम आपको बता दे के इनमे से किसी भी बात का कोई सिद्ध प्रमाण नहीं है। यह सब बाते सिर्फ अंदाजों के आधार पर ही कही जाती है। बच्चे का नींद में हंसना या रोना सिर्फ 10 से 20 सेकंड का ही होता है। यह प्रक्रिया शिशु के जन्म से लेकर दसवें महीने तक चलती है। ख़ास बात यह है के शिशु को सोते हुए हँसता या रोता देख घबराना नहीं चाहिए।